आसन नहीं था किले गढ़ना,तब भी लोगो ने गढ़े /
आसन नहीं था उन पर चढ़ना,तब भी ललकारकर लोग उन पर चढ़े /
किले होते ही है फतह के लिए,वैसे ही रात भी होती है सुबह के लिए /
पर सुबह की प्रतीक्षा को ही बना ले कोई अपना लक्ष्य,
तो उसे निगल जाता है अपना ही शयनकक्ष /
पर जो होता है सिद्धसंकल्प वो ठानता है,अंधेरे से लड़ाई कर बैठता है /
जलाता है दीया, सुलगता है मोमबत्ती,
और पाट लेता है रात और प्रभात के बीच की अंधी खाई
Gold Medalist Counseling Psychologist